Wednesday, September 19, 2018

क्या होता है विपरीत राजयोग? व किस प्रकार बनता है विपरीत राजयोग? व क्या फल होता है विपरीत राजयोग का? व क्यू फल नही देता है विपरीत राजयोग?

क्या होता है विपरीत राजयोग? व किस प्रकार बनता है विपरीत राजयोग? व क्या फल होता है विपरीत राजयोग का? व क्यू फल नही देता है विपरीत राजयोग? 


क्या होता है विपरीत राजयोग? 

जब जातक की कुंडली में छठे, आठवे व् बारहवे भाव के स्वामी छठे, आठवे या बारहवे भाव में स्थित हो तो विपरीत राजयोग बनता है|
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किस प्रकार बनता है विपरीत राजयोग?
जब षष्ठेश- अष्टम भाव या बारहवे भाव में हो या अष्टमेश- षष्ठ या बारहवे भाव में हो या व्ययेश षष्ठ या अष्टम भाव में हो तो विपरीत राजयोग बनता है|
विपरीत राजयोग के मुख्य रूप से उनके भावो के अनुसार तीन भागो में विभाजित किया गया है-
हर्ष- षष्ठ भाव का स्वामी- अष्टम भाव या बारहवे भाव में हो|
सरल- अष्टम भाव का स्वामी-  षष्ठ या बारहवे भाव में हो|
विमल- व्यय भाव का स्वामी- षष्ठ या अष्टम भाव में हो|

क्या फल होता है विपरीत राजयोग का?
छठे, आठवे व् बारहवे भाव में जिस भाव का भी ग्रह जाता है उसका फल नष्ट हो जाता है यह सर्वविदित है-

षष्ठ भाव रोग, शत्रु, ऋण, विवाद, चोरी, चोट, हनी, धोखा, जेल, यातना, बल, मुकदमा इत्यादि का भाव होता है अब यदि इस भाव का स्वामी आठवे व् बारहवे भाव में जाए तो षष्ठ भाव का फल नष्ट कर देगा अर्थात रोग, शत्रु, ऋण, विवाद, चोरी, चोट, हनी, धोखा, जेल, यातना, बल, मुकदमा इत्यादि का नाश करेगा जो की विपरीत राजयोग कहलाता है|

अष्टम भाव मृत्यु का प्रकार, बाधाए, दुर्घटना, रूकावट, युद्ध, शत्रु, चिन्ता इत्यादि का भाव होता है अब यदि इस भाव का स्वामी षष्ठ या बारहवे भाव में जाये तो अष्टम भाव का फल नष्ट कर देगा अर्थात मृत्यु का प्रकार, बाधाए, दुर्घटना, रूकावट, युद्ध, शत्रु, चिन्ता इत्यादि का नाश करेगा जो की विपरीत राजयोग कहलाता है|

व्यय भाव (बारहवे भाव) व्यय, हानी, दण्ड, कारावास, कलह, दुराचरण इत्यादि का भाव होता है अब यदि इस भाव का स्वामी षष्ठ या अष्टम भाव में जाये तो व्यय भाव का फल नष्ट कर देगा अर्थात व्यय, हानी, दण्ड, कारावास, कलह, दुराचरण इत्यादि का नाश करेगा जो की विपरीत राजयोग कहलाता है|


क्यू फल नही देता है विपरीत राजयोग?
विपरीत राजयोग निम्न कारणों से फल नही देते है –
यदि भाव का स्वामी स्वयं के भाव को देखता है, तो वह कभी भी अपने भाव की हानि होने नही देता है| अब यदि –
षष्ठ भाव का स्वामी यदि व्यय भाव में हो तो उसकी पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पे होगी इस दशा में भी विपरीत राजयोग फलित नही होगा|
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व्यय भाव का स्वामी यदि षष्ठ भाव में हो तो उसकी पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पे होगी इस दशा में भी विपरीत राजयोग फलित नही होगा|  
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अष्टम भाव में गुरु की राशि धनु राशि या मीन राशि हो और गुरु व्यय भाव में हो तो भी गुरु की पूर्ण नवम दृष्टि अष्टम भाव पे होगी इस दशा में भी विपरीत राजयोग फलित नही होगा|
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व्यय भाव में गुरु की राशि धनु राशि या मीन राशि हो और गुरु अष्टम भाव में हो तो भी गुरु की पूर्ण पंचम दृष्टि व्यय भाव पे होगी इस दशा में भी विपरीत राजयोग फलित नही होगा|
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विपरीत राजयोग के लिए दो चीज़े प्रमुख है पहला किस भाव का स्वामी है व दूसरा किस भाव में जा रहा है-
यदि षष्ठेश, अष्टमेश या व्ययेश प्रबल हो तो उसकी हानि करने के लिए जिस भाव में वह जा रहा है वह भाव का स्वामी भी प्रबल होना चाहिए यदि जिस भाव में जा रहा है वह भाव स्वामी प्रबल नही है तो विपरीत राजयोग फलित नही होगा|


मै आशा करता हू की आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी| आपको ये जानकारी कैसी लगी इसके बारे में हमें जरुर बताइयेगा| व आगे इसी तरह की ज्योतिष की जानकारी के लिए जुड़े रहिएगा..........


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