क्या होता है दैन्य योग? व कैसे होते है दैन्य योग में उतपन्न जातक? व क्यों फलित नही होता है दैन्य
योग?
क्या होता है दैन्य योग?
लग्न से प्रारम्भ कर द्वादश भाव पर्यन्त दो भावेशों में परस्पर
व्यत्यय सम्बन्ध से कुल 66 योग बनते है| इसमें 30 योग षष्ठ या अष्टम या
बारहवें भाव के स्वामियों के योग से उत्पन्न होते है| इनको दैन्य योग कहते है|
षष्ठ भाव के स्वामी के साथ अन्य 11 भावेशों में व्यत्यय
सम्बन्ध – जनित 11 योग होगें –
(1) षष्ठेश और लग्नेश
में व्यत्यय
(2) षष्ठेश और द्वितीयेश
में व्यत्यय
(3) षष्ठेश और तृतीयेश
में व्यत्यय
(4) षष्ठेश और चतुर्थेश
में व्यत्यय
(5) षष्ठेश और पंचमेश
में व्यत्यय
(6) षष्ठेश और सप्तमेश
में व्यत्यय
(7) षष्ठेश और अष्टमेश
में व्यत्यय
(8) षष्ठेश और नवमेश में
व्यत्यय
(9) षष्ठेश और दशमेश में
व्यत्यय
(10) षष्ठेश और एकादशेश में व्यत्यय
(11) षष्ठेश और व्ययेश में व्यत्यय
इनकी संख्या 11 है|
अष्टमेश के साथ शेष 10 भावेशो में 10 व्यत्यय सम्बन्ध होते है -
(1) अष्टमेश और लग्नेश
में व्यत्यय,
(2) अष्टमेश और द्वितीयेश
में व्यत्यय
(3) अष्टमेश और तृतीयेश
में व्यत्यय
(4) अष्टमेश और चतुर्थेश
में व्यत्यय
(5) अष्टमेश और पंचमेश
में व्यत्यय
(6) अष्टमेश और सप्तमेश
में व्यत्यय
(7) अष्टमेश और में
नवमेश व्यत्यय
(8) अष्टमेश और दशमेश
में व्यत्यय
(9) अष्टमेश और एकादशेश में
व्यत्यय
(10) अष्टमेश और व्ययेश में व्यत्यय
इनकी संख्या 10 है|
व्ययेश (द्वादशेश) भाव के स्वामी के साथ अन्य 9 भावेशों (षष्ठेश, अष्टमेश व व्ययेश को छोडकर) से
व्यत्यय सम्बन्ध-
(1) व्ययेश और लग्नेश
में व्यत्यय
(2) व्ययेश और द्वितीयेश में व्यत्यय
(3) व्ययेश और तृतीयेश
में व्यत्यय
(4) व्ययेश और चतुर्थेश में व्यत्यय
(5) व्ययेश और पंचमेश में व्यत्यय
(6) व्ययेश और सप्तमेश
में व्यत्यय
(7) व्ययेश और नवमेश में
व्यत्यय
(8) व्ययेश और दशमेश में
व्यत्यय
(9) व्ययेश और एकादशेश
में व्यत्यय
ये 9 योग होते है|
इसी प्रकार ये कुल 11 + 10 + 9 = 30 योग होते है| इन्हें दैन्य योग कहते है|
कैसे होते है दैन्य योग में उतपन्न जातक?
दैन्य योग में उतपन्न जातक व्यक्ति मुर्ख होता है|
दैन्य योग में उतपन्न जातक अपवाद युक्त पापकर्मा करने वाले होते है|
दैन्य योग में उतपन्न जातक करूष वाकू होते है|
दैन्य योग में उतपन्न जातक शत्रुओ से पीड़ित होते है|
दैन्य योग में उतपन्न जातक चंचल बुद्धि के होते है|
दैन्य योग में उतपन्न जातक के समस्त कार्य बाधित होते है|
क्यों फलित नही होता है दैन्य योग?
दैन्य योग के प्रमुख
कारक षष्ठ या
अष्टम या बारहवा भाव का स्वामी व जिसका
सम्बन्ध षष्ठ या
अष्टम या बारहवा भाव का स्वामी से
होगा वही बनेगा तो निम्न कारणों से दैन्य योग अपना पूर्ण फल नही देगा—
यदि षष्ठ या अष्टम या
बारहवा भाव का स्वामी ग्रह बालावस्था, वृद्ध अवस्था या मृत अवस्था
में हो तो भी जातक को दैन्य योग कभी अपना
पूर्ण फल नही देगा|
षष्ठ या अष्टम या बारहवा भाव के स्वामी से जिस भाव का सम्बन्ध होगा वह ग्रह यदि बालावस्था, वृद्ध अवस्था या मृत
अवस्था में हो तो भी जातक को दैन्य योग कभी अपना पूर्ण फल नही देगा|
षष्ठ या अष्टम या बारहवा भाव के स्वामी के साथ सम्बन्ध बना हुआ यदि षष्ठ भाव या अष्टम
भाव या व्यय भाव में हो तो भी जातक को दैन्य योग कभी अपना
पूर्ण फल नही देगा|
मै आशा करता हू की आपको ये जानकारी
अच्छी लगी होगी| आपको ये जानकारी कैसी लगी इसके बारे में
हमें जरुर बताइयेगा| व आगे इसी तरह की ज्योतिष की जानकारी के लिए
जुड़े रहिएगा..........
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