आज हम बताएँगे नक्षत्र के विषय में
किसे
कहते है नक्षत्र:
तारो के समूह को
नक्षत्र कहते हैं! आकाश-मण्डल में जो असंख्यात तारिकाओ से कहीं अश्व, सर्प, हाथ
आदि के आकार बन जाते हैं, वे ही नक्षत्र कहलाते हैं! समस्त आकाश-मण्डल को
ज्योतिषशास्त्र ने 27 भागों में विभक्त कर प्रत्येक भाग का नाम रखा है! सूक्ष्मता
से समझाने के लिए प्रत्येक नक्षत्र के भी चार भाग किये गये हैं, जो चरण कहलाते
हैं.
27 नक्षत्रो के नाम निम्न हैं:-
१. अश्विनी
|
१०. मघा
|
१९. मूल
|
२. भरणी
|
११.
पूर्वाफाल्गुनी
|
२०. पूर्वाषाढा
|
३. कृतिका
|
१२.
उत्तराफाल्गुनी
|
२१. उतराषाढ
|
४. रोहिणी
|
१३. हस्त
|
२२. श्रवण
|
५. मृगशिरा
|
१४. चित्रा
|
२३. घनिष्ठा
|
६. आद्रा
|
१५. स्वाति
|
२४. शतभिषा
|
७. पुनर्वसु
|
१६. विशाखा
|
२५. पूर्वाभाद्रपद
|
८. पुष्य
|
१७. अनुराधा
|
२६. उतराभाद्रपद
|
९. आश्लेषा
|
१८. ज्येष्ठा
|
२७. रेवती
|
अभिजित को भी २८वाँ नक्षत्र माना गया है! ज्योर्तिविदों का मत है कि
उतराषाढ की आखरी १५ घटियाँ और श्रवण के प्रारम्भ की ४ घटियाँ, इस प्रकार १९ घटियों
के मान वाला अभिजित नक्षत्र होता है! यह समस्त कार्यों में शुभ माना गया है!
नक्षत्रो के स्वामी:-
अश्विनी के अश्विनीकुमार, भरणी के काल, कृतिका के अग्नि, रोहिणी के
ब्रह्मा, मृगशिरा के चंद्रमा,आद्रा के रूद्र,पुनर्वसु के अदिति, पुष्य के
ब्रहस्पति, आश्लेषा के सर्प, मघा के पितर,
पूर्वाफाल्गुनी के भग, उत्तराफाल्गुनी के अयर्म, हस्त के सूर्य, चित्रा के विश्वकर्मा, स्वाति के पवन, विशाखा के शुक्राग्नि, अनुराधा
के मित्र, ज्येष्ठा के इन्द्र, मूल के निऋति, पूर्वाषाढा के जल, उतराषाढ के
विश्वेदेव, श्रवण के विष्णु, घनिष्ठा के वसु, शतभिषा के वरुण, पूर्वाभाद्रपद के
अजैकपाद, उतराभाद्रपद के अहिब्रुघ्न्य, रेवती के पूषा एवं अभिजित के स्वामी
ब्रह्मा हैं!
नक्षत्रो को उनके गुण के अनुसार निम्न भागो में विभक्त किया गया है
पंचक संज्ञक:- घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उतराभाद्रपद और रेवती –इन नछ्त्रो
में पंचक दोष माना जाता हैं!
मूल संज्ञक:-
ज्येष्ठा, आश्लेषा, रेवती, मूल, मघा, और अश्वनी – ये नक्षत्र मूल-संज्ञक है! इनमे
यदि बालक उत्पन्न होता है तो २७ दिन के पश्च्यात जब वही नक्षत्र आ जाता है तब
शांति करायी जाती है! इन नक्षत्रो में ज्येष्ठा और मूल गंडान्त मूल-संज्ञक तथा
आश्लेषा सर्पमूलसंज्ञक है!
ध्रुव संज्ञक:- उत्तराफाल्गुनी, उतराषाढ, उतराभाद्रपद व रोहिणी धुव संज्ञक है!
चर संज्ञक:- स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, घनिष्ठा और शतभिषा चर या चलसंज्ञक है!
उग्र संज्ञक:- पूर्वाषाढा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी, मघा, व भरणी उग्र
संज्ञक है!
मिश्र संज्ञक:- विशाखा और कृतिका मिश्र-संज्ञक है!
लघु संज्ञक:- हस्त,
अश्विनी, पुष्य और अभिजित क्षिप्र या लघु-संज्ञक है!
मृदु संज्ञक:- मृगशिरा, रेवती, चित्रा और अनुराधा मृदु या मैत्रसंज्ञक है!
तीक्ष्ण संज्ञक:- मूल, ज्येष्ठा, आद्रा और आश्लेषा तीक्ष्ण या दारुणसंज्ञक है!
अधोमुख संज्ञक:- मूल, आश्लेषा, विशाखा, कृतिका, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद,
पूर्वाषाढा, भरणी और मघा अधोमुख संज्ञक है! इनमे कुआँ या नींव खोदना शुभ माना जाता
है!
ऊधर्वमुख संज्ञक:- आद्रा, पुष्य, श्रवण, घनिष्ठा और शतभिषा ऊधर्वमुख संज्ञक है!
तिर्यन्ग्मुख संज्ञक:- अनुराधा, हस्त, स्वाति, पुनर्वसु, ज्येष्ठा और अश्विनी तिर्यन्ग्मुख
संज्ञक है!
दग्ध संज्ञक:- रविवार को भरणी, सोमवार को चित्रा, मंगलवार को उतराषाढ, बुधवार को
घनिष्ठा, गुरुवार को उत्तराफाल्गुनी, शुक्रवार को ज्येष्ठा और शनिवार को रेवती
दग्ध संज्ञक है! इन नक्षत्रो में शुभ कार्य करना वर्जित है!
मासशुन्य संज्ञक:- चैत्र में रोहणी और अश्विनी; वैशाख में चित्रा और स्वाति; ज्येष्ठ
में उतराषाढ और पुष्य; आषाढ़ में पूर्वाफाल्गुनी और घनिष्ठा; श्रावण में उतराषाढ और
श्रवण; भाद्रपद में शतभिषा और रेवती; आश्विनी में पूर्वाभाद्रपद; कार्तिक में
कृतिका और मघा; मार्गशीर्ष में चित्रा और विशाखा; पौष में आद्रा, अश्विनी और हस्त;
माघ में श्रवण और मूल एवं फाल्गुन में भरणी और ज्येष्ठा मास शून्य नक्षत्र है!
कार्य की सिद्धि में नक्षत्रो की संज्ञाओ का फल प्राप्त होता है!
नक्षत्रो
के चरणाक्षर :-
नक्षत्रो
के नाम एवं उनके चरणाक्षर निम्न प्रकार है:-
नक्षत्रो के नाम
|
नक्षत्रो के चरणाक्षर
|
|||
प्रथम चरण
|
दितीय चरण
|
तृतीय चरण
|
चतुर्थ चरण
|
|
१. अश्विनी
|
चू
|
चे
|
चो
|
ला
|
२. भरणी
|
ली
|
लू
|
ले
|
लो
|
३. कृतिका
|
अ
|
ई
|
उ
|
ए
|
४. रोहिणी
|
ओ
|
वा
|
वी
|
वू
|
५. मृगशिरा
|
वे
|
वो
|
का
|
की
|
६. आद्रा
|
कु
|
घ
|
³
|
छ
|
७. पुनर्वसु
|
के
|
को
|
हा
|
ही
|
८. पुष्य
|
हू
|
हे
|
हो
|
डा
|
९. आश्लेषा
|
डी
|
डू
|
डे
|
डो
|
१०. मघा
|
मा
|
मी
|
मू
|
मे
|
११.
पूर्वाफाल्गुनी
|
मो
|
टा
|
टी
|
टो
|
१२.
उत्तराफाल्गुनी
|
टे
|
टो
|
पा
|
पी
|
१३. हस्त
|
पू
|
ष
|
ण
|
ठ
|
१४. चित्रा
|
पे
|
पो
|
रा
|
री
|
१५. स्वाति
|
रु
|
रे
|
रो
|
ता
|
१६. विशाखा
|
ती
|
तू
|
ते
|
तो
|
१७. अनुराधा
|
ना
|
नी
|
नू
|
ने
|
१८. ज्येष्ठा
|
नो
|
या
|
यी
|
यू
|
१९. मूल
|
ये
|
यो
|
भा
|
भी
|
२०. पूर्वाषाढा
|
भू
|
ध
|
फ
|
ढ
|
२१. उतराषाढ
|
भे
|
भो
|
जा
|
जी
|
२२. श्रवण
|
खी
|
खू
|
खे
|
खो
|
२३. घनिष्ठा
|
गा
|
गी
|
गू
|
गे
|
२४. शतभिषा
|
गो
|
सा
|
सी
|
सू
|
२५. पूर्वाभाद्रपद
|
से
|
सो
|
दा
|
दी
|
२६.उतराभाद्रपद
|
दू
|
थ
|
झ
|
´A
|
२७. रेवती
|
दे
|
दो
|
चा
|
ची
|
मै आशा करता हू की
आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी! आपको ये जानकारी कैसी लगी इसके बारे में हमें
जरुर बताइयेगा! व आगे इसी तरह की ज्योतिष की जानकारी के लिए जुड़े रहिएगा..........
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