आज हम बात करेंगे राशियों की कौन कौन सी होती है राशियाँ? क्या क्या होते है उनके गुण धर्म
क्या होती है
राशियाँ
भारतीय ज्योतिष
शास्त्र में आकाशस्थ भचक्र का प्रथम बिंदु अश्विनी नक्षत्र से लिया जाता है! अश्विनी आदि 27
नक्षत्र ( अथवा 27*4=108 पाद ) और मेषादि बारह राशिया ( 27*4 अथवा 12*9=108 के रूप
में ) आकाशस्थ भचक्र में स्थित है! मैंने अपनी पोस्ट “आज हम बताएँगे नक्षत्र के विषय में” नक्षत्र के विषय में बताया था की सभी नक्षत्र 4 चरण में बटे हुए है, तो 24*4=108 कुल चरण में 12 से भाग
देने पे 9 आता है, अर्थात 9 चरण की 1 राशी होती है! अर्थात
मेष राशी 2 नक्षत्र व 3रे नक्षत्र के प्रथम चरण तक ही होगी
जो की अश्विनी के चार चरण भरणी के चार चरण व कृतिका के प्रथम चरण तक हुआ, इसके बाद
कृतिका के 3 चरण रोहिणी के 4 चरण व मृगशिरा के 2 चरण तक वृष राशी होगी! इसको
विस्तार से अलग अलग राशी परिचय में बताया जाएगा!
कौन कौन सी होती है
राशियाँ?
कुल बारह राशियाँ
होती है जिनके नाम निम्न है:-
राशियों के गुण धर्म
मेष :- यह चर, क्रूर, पुरुष, अग्नितत्व, पूर्व दिशा का
स्वामी, मस्तक का बोध करने वाला, पृष्ठोदय, उग्र प्रकृति, रक्तवर्ण एवं पादजलराशि
कहलाता है! यह रात्री में बलवान है! यह
पित-प्रकृति करक है तथा इसका स्वामी मंगल है! सूर्य इसमें उच्च और शनि इसमें नीच
होता है! इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव साहसी, अभिमानी और मित्रों पर कृपा रखने
वाला है!
वृष :- स्थिर, सौम्य, स्त्री, पृथ्वीतत्व, दक्षिण दिशा
का स्वामी, पृष्ठोदय, स्वेतवर्ण, शरीर का मुख, वायु-प्रकृति-कारक और अर्धजल-राशि
कहलाता है! इसका स्वामी शुक्र है! यह रात्री में बलवान है! चंद्रमा
इसमें उच्च होता है तथा 4 से 30 अंश तक चंद्रमा
मूल-त्रिकोण में कहा जाता है! राहु इसमें उच्च और केतु इसमें नीच होता है! इसका
प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी, समझ बूझ कर काम करने वाला, परिश्रमी और सांसारिक कार्य
में दक्ष होना है!
मिथुन :- द्विस्वभाव, क्रूर, पुरुष, वायुतत्व, पश्चिम दिशा
का स्वामी, शरीर का अंग, बाहु, शीर्षोदय, कफ-वायु-पित ( त्रिदोष ) विशिष्ट और
दुर्वारंग कारक है! यह रात्री में बलवान है! इसको
निर्जल राशि कहते है! बुध इसका स्वामी है! इसका प्राकृतिक स्वभाव विधाध्ययनी और
शिल्पी है!
कर्क :- यह चर, सौम्य, स्त्री, जलतत्व, उतर दिशा का
स्वामी, वक्षस्थल का बोध करने वाला, पृष्ठोदय और लाली गोराई का कारक कहलाता है! यह
पूर्णजलराशि कहलाता है! यह
रात्री में बलवान है! इसका स्वामी चंद्रमा है! मंगल इसमें नीच होता है!
यह राहु का मूलत्रिकोण है! प्राकृतिक स्वभाव से सांसारिक उन्नति में प्रवृतिवानलज्जावान,
कार्य करने में स्थिरता और सम्यानुयायी का सूचक है!
सिंह :- स्थिर, क्रूर, पुरुष, अग्नितत्व, पूर्व दिशा का
स्वामी, हृदय में शीर्षोदय, पीतवर्ण, पित-प्रकृति-कारक है! यह निर्जल-राशि है! यह
दिन में बलवान है! इसका स्वामी सूर्य है! 1 से 20 अंश तक सूर्य का मूल-त्रिकोण
और शेष स्वगृही कहलाता है! इसका प्राकृतिक स्वभाव मेष के जैसा है परन्तु
स्वतन्त्रता का प्रेमी और चित की उदारता का लक्षण रखता है!
कन्या :- द्विस्वभाव, सौम्य, स्त्री, पृथ्वीतत्व, दक्षिण
दिशा का स्वामी, अंग में पेट, शीर्षोदय पाण्डुवर्ण और वायु-प्रकृति-कारक है! यह
निर्जल-राशि है! यह दिन में बलवान है! इसका स्वामी बुध है! बुध इसमें 15 अंश तक उच्च, 16 से 25 अंश तक मूल-त्रिकोण और शेष स्वगृही होता है!
इसका प्राकृतिक स्वभाव मिथुन के जैसा है, परन्तु अपनी उन्नति और मान पर पूर्णध्यान
रखने के अभिलाषी का सूचक है!
तुला :- यह चर, क्रूर, पुरुष, वायुतत्व, पश्चिम दिशा का
स्वामी, शरीर में नाभि के निचे का स्थान, शीर्षोदय, त्रिदोष और श्यामवर्ण कारक है!
यह पादजलराशि है और इसका स्वामी शुक्र है! यह दिन में बलवान है! शनि
इसमें उच्च और सूर्य इसमें नीच होता है! इसमें 20 अंश तक
शुक्र का मूल-त्रिकोण और शेष स्वगृही होता है! केतु की मित्र राशि है! इसका
प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, ज्ञानप्रिय, कार्य-सम्पन्न और राजनीतिज्ञ है!
वृश्चिक :- स्थिर, सौम्य, स्त्री, जलतत्व, उतर दिशा का
स्वामी, शरीर का जनेन्द्रिय ( लिंगादि ) शीर्षोदय,
स्वेतवर्ण, कांचनवर्ण और कफ-प्रकृति कारक कहलाता है! इसे अर्धजल-राशि कहते है!
मंगल इसका स्वामी है और चंद्रमा का यह नीच स्थान है! यह दिन में बलवान है! केतु का
इस राशि में उच्च होना भी कहा जाता है राहु नीच होता है! प्राकृतिक स्वभाव से यह दम्भी,
हठी, दूढप्रतिज्ञ, स्पष्टवादी और निर्मलचित का होता है!
धनु :- द्विस्वभाव, क्रूर, पुरुष, अग्नितत्व, पूर्व
दिशा का स्वामी, शरीर के पैरों की संधि तथा जंघा, पृष्ठोदय, कंचनवर्ण और पित-प्रकृति-कारक
कहलाता है! इसे अर्धजल-राशि कहते है! यह रात्री में बलवान है! बृहस्पति
इसका स्वामी है! इसमें 20 अंश तक बृहस्पति का मूल-त्रिकोण और शेष स्वगृही
होता है! प्राकृतिक स्वभाव से यह अधिकारप्रिय, करुणामय और मर्यादा का इक्छुक होता
है!
मकर :- यह चर, सौम्य, स्त्री, पृथ्वीतत्व, दक्षिण दिशा
का स्वामी, शरीर के पैरों की गाँठ तथा घुटना, पृष्ठोदय, वायु-प्रकृति-कारक और
पिंगलवर्ण कारक है! यह पूर्णजलराशि कहलाता है! यह रात्री में बलवान है! शनि
इसका स्वामी है! बृहस्पति इसमें नीच और केतु मूलत्रिकोण में होता है! प्राकृतिक स्वभाव
से यह उच्चपदाभिलाषी होता है!
कुम्भ :- स्थिर, क्रूर, पुरुष, वायुतत्व, पश्चिम दिशा का
स्वामी, शरीर में फिल्ली, शीर्षोदय, विचित्रवर्ण, जलराशि तथा त्रिदोष कारक है! इसे
अर्धजल-राशि कहते है! शनि इसका स्वामी है! यह दिन में बलवान है! इसमें 20 अंश तक शनि का
मूल-त्रिकोण और शेष स्वगृही होता है! प्राकृतिक स्वभाव से यह विचारशील, शांत चित
से नयी बाते पैदा करने वाला और धर्म-रूप होता है!
मीन :- द्विस्वभाव, सौम्य, स्त्री, जलतत्व, उतर दिशा का
स्वामी, शरीर के अंग का पैर और सुपती, उभयोदय,
कफ-प्रकृति और पिंगलवर्ण कारक है! यह पूर्णजलराशि कहलाता है!
बृहस्पति इसका
स्वामी और बुध इसमें नीच का होता है! यह दिन में बलवान है! प्राकृतिक
स्वभाव से यह उतम स्वभाव वाला, दानी और कोमलचित का होता है!
मै आशा करता हू की
आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी! आपको ये जानकारी कैसी लगी इसके बारे में हमें
जरुर बताइयेगा! व आगे इसी तरह की ज्योतिष की जानकारी के लिए जुड़े रहिएगा..........
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ReplyDeleteNice Article Top 40 Best Status For Friends Forever In Hindi
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